।। तेरे पाँच हुए कल्याण प्रभो, इक बार मेरा कल्याण कर दे ।।
अन्तर्यामी - अन्तर्ज्ञानी , प्रभु दूर मेरा अज्ञान कर दे ।
।। तेरे पाँच हुए कल्याण प्रभो, इक बार मेरा कल्याण कर दे ।।
गर्भ समय में रत्न जो बरसें , उनमें से एक रत्न नहीं चाहूँ ।
जन्म समय क्षीरोदधि से , इन्द्रों ने किया वो नवन नहीं चाहूँ ।
क्या चाहु सुन ले , मैं क्या चाहु सुन ले , सुन ले ।
जो चित्त को निर्मल शान्त करे , वही गन्धोदक मुझे दान कर दे ।
।। तेरे पाँच हुए कल्याण प्रभो, इक बार मेरा कल्याण कर दे ।।
धार दिगम्बर भेष किया तब , तप कर विषय विकार को त्यागा ।
सार नहीं संसार में कोई , इसीलिए संसार को त्यागा ।
क्या चाहु सुन ले , मैं क्या चाहु सुन ले , सुन ले ।
अपने लिए बरसों ध्यान किया , मेरी ओर भी थोड़ा - सा ध्यान कर दे ।
।। तेरे पाँच हुए कल्याण प्रभो, इक बार मेरा कल्याण कर दे ।।
केवल ज्ञान की मिल गई ज्योति , लोकालोक दिखाने वाली ।
समवशरण में खिर गई वाणी, सबकी समझ में आने वाली ।
क्या चाहु सुन ले , मैं क्या चाहु सुन ले , सुन ले ।
हे वीतराग सर्वज्ञ प्रभो , मुझे मेरा दरश आसान कर दे ।
।। तेरे पाँच हुए कल्याण प्रभो, इक बार मेरा कल्याण कर दे ।।
तीर्थंकर बनकर तू प्रगटा , स्वाभाविक थी मुक्ति तेरी ।
मुक्ति मुझको दे तब देना , भव भव की दे भक्ति तेरी।
क्या चाहु सुन ले , मैं क्या चाहु सुन ले , सुन ले ।
निश दिन तेरे गुणगान करू , बस इतना ही भगवान कर दे ।
अभी इतना ही भगवान् कर दे । .
यहाँ कौन है ऐसा तेरे सिवा , औरों को जो अपने समान कर दे ।
।। तेरे पाँच हुए कल्याण प्रभो, इक बार मेरा कल्याण कर दे ।।