।। श्री सुमतिनाथ - जिनेंद्र ।।
जल चंदन तंदुल प्रसून चरु , दीप धूप फल सकल मिलाय।
नाचि - राचि सिरनाय समरचौं , जय -जय-जय-जय जिनराय।
हरि -हर -वंदित पाप - निकंदित , सुमतिनाथ त्रिभुवन के राय।
तुम पद -पदम् सदम -शिवदायक , जजत मुदितमन उदित सुभाय।
।। ॐ ह्रीं श्री सुमतिनाथ जिनेन्द्राय अनर्घ्य पद - प्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।।