श्री मल्लिनाथ - जिनेंद्र
जल - फल अरघ मिलाय गाय गुन, पूजौं भगति बढ़ाई।
शिवपद -राज हेत हे श्रीधर, शरन गही मैं आई।
राग -दोष - मद -मोह हरन को, तुम ही हो वरवीरा।
यातैं शरन गही जगपति जी , वेग हरो भवपीरा।
।।ॐ ह्रीं श्री मल्लिनाथ जिनेन्द्राय अनर्घ्य पद - प्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।।