श्री पार्श्वनाथ जिनेन्द्र
नीर गन्ध अक्षतान पुष्प चारु लीजिये।
दीप धूप श्री फलादि अर्घ तैं जजिजीये।
पार्श्वनाथ देव सेव मैं आपकी करूँ सदा।
दीजिये निवास - मोक्ष भूलिये नहीं कदा।
।।ॐ ह्रीं श्री पार्श्वनाथ जिनेन्द्राय अनर्घ्य पद प्राप्तये अर्घ्य निर्वपामिति स्वाहा।।